इन परिस्थितियों में, सच्ची साहित्यिक कर्मठता किसी साहित्यिक ढांचे के भीतर क़ैद नहीं रह सकती। बल्कि यह तो उसकी अपनी ही निरर्थकता की आदतन अभिव्यक्ति होगा। केवल लेखन और अमल के कड़े और परस्पर संशोधन से ही एक सार्थक साहित्यिक प्रभावशीलता अस्तित्व में आ सकती है। साहित्य को उन तुच्छ रूपों का पालन-पोषण करना चाहिए जो सक्रिय समुदायों में इसके प्रभावों को क़िताब के दिखावटी, सार्वभौमिक रूप से ज़्यादा बेहतर फ़िट करते हैं। वरन: पैम्फ्लेट, किताबचे, लेख, और तख्तियां। केवल ऐसी चुस्त भाषा ही खुद को सक्रिय रूप से परिस्थितियों के क़ाबिल बता पाती है। सामाजिक अस्तित्व के विशाल तंत्र के लिए विचार वैसे ही हैं जैसे मशीनों के लिए तेल। एक टरबाइन की मरम्मत करते हुए कोई उस पर निरा तेल नहीं उलट देता। थोड़ा-थोड़ा लेपता है, उन छुपे हुए जोड़ों और धुरियों पर, जिन्हें वह जानता है।
One Way Street, Walter Benjamin
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